विविध >> भारतीय डाक भारतीय डाकअरविन्द कुमार सिंह
|
5 पाठकों को प्रिय 188 पाठक हैं |
पुस्तक भारतीय डाक प्रणाली के विकास, कार्यप्रणाली, आधुनिकीकरण जैसे विषयों को सहज भाव से कई दुर्लभ चित्रों के साथ प्रस्तुत करती है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भारतीय डाक प्रणाली का जो उन्नत और परिष्कृत स्वरूप आज
हमारे सामने है, वह हजारों सालों के लंबे सफर की देन है। भारत जैसे विशाल
और विविधतापूर्ण देश में सांस्कृतिक आदान-प्रदान, व्यापार, घरेलू
अर्थव्यवस्था, सामाजिक एकीकरण में भारतीय डाक प्रणाली का महत्वपूर्ण
योगदान है। इंटरनेट के युग में भी पोस्टकार्ड पर हाथों से लिखे गए शब्दों
का भावनात्मक महत्व बरकरार है। 150 वर्ष पुराना यह विशाल तंत्र आज संचार
क्रांति की चुनौती से जूझ रहा है। इस तंत्र के लाखों-लाख कर्मचारी न केवल
लोगों के सुख-दुख एक-दूसरे तक पहुंचाते हैं, बल्कि ये अनगिनत घरों के लिए
रोजी-रोटी का जरिया भी हैं। पुस्तक भारतीय डाक प्रणाली के विकास,
कार्यप्रणाली, आधुनिकीकरण जैसे विषयों को सहज भाव से कई दुर्लभ चित्रों के
साथ प्रस्तुत करती है।
सैकड़ों साल से जारी सफर...
भारतीय डाक प्रणाली का जो उन्नत और परिष्कृत
स्वरूप आज
हमारे सामने है, वह हजारों सालों के लंबे सफर की देन है। अंग्रेजों ने
डेढ़ सौ साल पहले अलग-अलग हिस्सों में अपने तरीके से चल रही डाक व्यवस्था
को एक सूत्र में पिरोने की जो पहल की, उसने भारतीय डाक को एक नया रूप और
रंग दिया। पर अंग्रेजों की डाक प्रणाली उनके सामरिक और व्यापारिक हितों पर
केंद्रित थी। भारत की आजादी के बाद हमारी डाक प्रणाली को आम आदमी की
जरूरतों को केंद्र में रख कर विकसित करने का नया दौर शुरू हुआ। नियोजित
विकास प्रक्रिया ने ही भारतीय डाक को दुनिया की सबसे बड़ी और बेहतरीन डाक
प्रणाली बनाया है। राष्ट्र निर्माण में भी डाक विभाग ने ऐतिहासिक भूमिका
निभाई है और इसकी उपयोगिता लगातार बनी हुई है। आम आदमी डाकघरों और
पोस्टमैन पर अगाध भरोसा करता है। तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद इतना जन
विश्वास कोई और संस्था नहीं अर्जित कर सकी है। यह स्थिति कुछ सालों में
नहीं बनी है। इसके पीछे बरसों का श्रम और सेवा छिपी है।
मानव सभ्यता के विकास में संचार साधनों का अनूठा योगदान रहा है। संचार साधनों ने जहां एक ओर पूरी दुनिया को एक दूसरे के करीब लाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई, वहीं आम आदमी के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव का माध्यम भी यह बना। संचार के तरीकों का विकास मानव सभ्यता के विकास के साथ होता रहा है। आज हम जिस बुलंदी पर हैं, उसकी पृष्ठभूमि में संचार तंत्रकी भी ऐतिहासिक भूमिका छिपी है। आदिकाल के संकेतों से लेकर आज की संचार क्रांति के बीच आदमी ने हजारों सालों लंबा सफर तय किया है। सफलता और विफलता के बीच उसकी यात्रा लगातार जारी रही है। आदमी ने अपने संदेशों को अपने करीबियों तक पहुंचाने के लिए दुनिया में जितने तरीके अपनाए हैं, समय-समय पर उतने ही संचार साधनों को विकसित भी किया है। संचार साधनों में चिट्ठी का कोई जोड़ नहीं। जो काम मानव विकास में चिट्ठी ने किया है, वह कोई और नहीं कर सका है। इसी नाते भारत ही नहीं पूरी दुनिया में डाक सेवा ही सबसे भरोसेमंद और सबसे बड़ी संचार प्रणाली के रूप में स्वीकारी गई। आज हम संचार क्रांति के नए युग में बैठे हैं। एक साल में संचार की दुनिया जिस तेजी से बदल जाती है, उतने बदलाव में पहले सैकड़ों साल लगे। आज उपग्रहों की मदद से सेकेंडों में संदेश आ-जा रहे हैं, पर वह दौर भी था जब कबूतरों से लेकर हरकारे ही संदेशा पहुंचाने के साधन थे।
मानव सभ्यता के विकास में संचार साधनों का अनूठा योगदान रहा है। संचार साधनों ने जहां एक ओर पूरी दुनिया को एक दूसरे के करीब लाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई, वहीं आम आदमी के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव का माध्यम भी यह बना। संचार के तरीकों का विकास मानव सभ्यता के विकास के साथ होता रहा है। आज हम जिस बुलंदी पर हैं, उसकी पृष्ठभूमि में संचार तंत्रकी भी ऐतिहासिक भूमिका छिपी है। आदिकाल के संकेतों से लेकर आज की संचार क्रांति के बीच आदमी ने हजारों सालों लंबा सफर तय किया है। सफलता और विफलता के बीच उसकी यात्रा लगातार जारी रही है। आदमी ने अपने संदेशों को अपने करीबियों तक पहुंचाने के लिए दुनिया में जितने तरीके अपनाए हैं, समय-समय पर उतने ही संचार साधनों को विकसित भी किया है। संचार साधनों में चिट्ठी का कोई जोड़ नहीं। जो काम मानव विकास में चिट्ठी ने किया है, वह कोई और नहीं कर सका है। इसी नाते भारत ही नहीं पूरी दुनिया में डाक सेवा ही सबसे भरोसेमंद और सबसे बड़ी संचार प्रणाली के रूप में स्वीकारी गई। आज हम संचार क्रांति के नए युग में बैठे हैं। एक साल में संचार की दुनिया जिस तेजी से बदल जाती है, उतने बदलाव में पहले सैकड़ों साल लगे। आज उपग्रहों की मदद से सेकेंडों में संदेश आ-जा रहे हैं, पर वह दौर भी था जब कबूतरों से लेकर हरकारे ही संदेशा पहुंचाने के साधन थे।
|
लोगों की राय
No reviews for this book